सबके लिये सरल, सुलभ और सहज न्याय की गारंटी हो, यह बहुत जरूरी है : मोदी

जयपुर (परिवर्तन): प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रविवार को कहा कि देश के ‘विकसित भारत’ के सपने की ओर बढ़ने के साथ ही सबके लिये सरल, सुलभ और सहज न्याय की गारंटी हो, यह बहुत जरूरी है।

प्रधानमंत्री ने रविवार को जोधपुर में राजस्थान उच्च न्यायालय के प्लैटिनम जुबली समारोह को संबोधित करते हुए कहा ‘‘15 अगस्त को मैंने लालकिले से ‘धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता’ (सेकुलर सिविल कोड) की बात की है। इस मुद्दे पर भले ही कोई सरकार पहली बार इतनी मुखर हुई हो, लेकिन हमारी न्यायपालिका दशकों से इसकी वकालत करती आई है।’’

उन्होंने कहा, “जब हम विकसित भारत के सपने को लेकर आगे बढ़ रहे हैं, उसमें हर किसी के लिए सरल, सुलभ और सहज न्याय की गारंटी हो यह बहुत जरूरी है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मेरा मानना है कि न्याय हमेशा सरल और स्पष्ट होता है, लेकिन कई बार प्रक्रियाएं उसे मुश्किल बना देती हैं। यह हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है कि हम न्याय को ज्यादा से ज्यादा सरल और स्पष्ट बनायें।’’

प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्हें संतोष है कि देश ने इस दिशा में कई ऐतिहासिक और निर्णायक कदम उठाये हैं।

प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘आज देश के सपने भी बड़े हैं, देशवासियों की आकांक्षाएं भी बड़ी हैं, इसलिए जरूरी है कि हम नए भारत के हिसाब से नए नवाचार करें और अपनी व्यवस्थाओं को आधुनिक बनाएं। ये सबके लिये न्याय के लिये भी उतना ही जरूरी है।’’

उन्होंने कहा कि उनकी सरकार ने पूरी तरह से अप्रासंगिक हो चुके सैकड़ों अप्रासंगिक (औपनिवेशिक) कानूनों को रद्द किया है।

उन्होंने कहा कि आजादी के इतने दशक बाद गुलामी की मानसिकता से उबरते हुए देश ने भारतीय दंड संहिता की जगह भारतीय न्याय संहिता को अपनाया है।

मोदी ने कहा, ‘‘दंड की जगह न्याय, यह भारतीय चिंतन का आधार भी है। भारतीय न्याय संहिता इस मानवीय चिंतन को आगे बढ़ाती है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘भारतीय न्याय संहिता हमारे लोकतंत्र को औपनिवेशिक मानसिकता से आजाद कराती है।’’

मोदी ने कहा ‘‘हमारी न्यायपालिका ने निरंतर राष्ट्रीय विषयों पर सजगता और सक्रियता की नैतिक ज़िम्मेदारी निभाई है। कश्मीर से अनुच्छेद -370 के अधिकतर प्रावधानों को हटाने और देश के संवैधानिक एकीकरण का उदाहरण हमारे सामने है। संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) जैसे मानवीय कानून का उदाहरण हमारे सामने है।’’

उन्होंने कहा ‘‘ऐसे मुद्दों पर राष्ट्रहित में स्वाभाविक न्याय क्या कहता है, ये हमारी अदालतों के निर्णयों से पूरी तरह से स्पष्ट होता रहा है।’’

प्रधानमंत्री ने कहा,“आज देश में 18 हजार से ज्यादा अदालतें कम्प्यूटराइज्ड हो चुकी हैं। मुझे बताया गया है कि नेशनल जूडिशियल डेटा ग्रिड से 26 करोड़ से ज्यादा मुकदमों की जानकारी एक सेंट्रलाइज्ड ऑनलाइन प्लैटफॉर्म पर जुड़ चुकी है।”

उन्होंने कहा कि आज पूरे देश की तीन हजार से अधिक अदालत परिसर और 1200 से ज्यादा जेलें वीडियो कॉन्फ्रेंस से जुड़ गई हैं।

मोदी ने कहा, “मुझे ख़ुशी है कि राजस्थान भी इस दिशा में काफी तेज गति से काम कर रहा है। यहां सैकड़ों अदालतें कम्प्यूटराइज्ड हो चुकी हैं। पेपरलेस अदालते, ई-फाईलिंग, समन के लिए इलेक्ट्रॉनिक सर्विस, वर्चुअल हियरिंग (ऑनलाइन सुनवाई) की व्यवस्था, ये कोई सामान्य बदलाव नहीं हैं।”

उन्होंने कहा, “हम एक सामान्य नागरिक के दृष्टिकोण से सोचें तो दशकों से हमारे यहां अदालतों के आगे ‘चक्कर’ शब्द, अनिवार्य हो गया था। अदालत का चक्कर, मुकदमे का चक्कर, यानी एक ऐसा चक्कर जिसमें फंस गए तो कब निकलेंगे कुछ पता नहीं! आज दशकों बाद उस सामान्य नागरिक की पीड़ा को खत्म करने, उस ‘चक्कर’ को समाप्त करने के लिए देश ने प्रभावी कदम उठाए हैं। इससे न्याय को लेकर नई उम्मीद जागी है। इस उम्मीद को हमें बनाए रखना है, लगातार अपनी न्यायिक व्यवस्था में सुधार करते चलना है”

मोदी ने कहा कि न्याय संहिता की यह मूल भावना ज्यादा से ज्यादा प्रभावी बने, यह दायित्व सभी लोगों पर है।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ‘‘प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल, आज के भारत में गरीब के सशक्तीकरण का परखा हुआ फॉर्मूला बन रहा है। पिछले 10 वर्षों में इसे लेकर कई वैश्विक एजेंसी और संस्थाओं ने भारत की भरपूर तारीफ की है। डीबीटी से लेकर यूपीआई तक, कई क्षेत्रों में भारत का काम एक ग्लोबल मॉडल बनकर उभरा है।”

उन्होंने कहा, “अपने उसी अनुभव को हमें अपनी न्याय प्रणाली में भी लागू करना है। इस दिशा में, प्रौद्योगिकी और अपनी भाषा में कानूनी दस्तावेजों तक पहुंच, ये गरीब के सशक्तीकरण का सबसे प्रभावी माध्यम बनेगा। सरकार इसके लिए दिशा नाम के नवोन्मेषी समाधान को भी बढ़ावा दे रही है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘ हमारे कानून के छात्र और अन्य विधि विशेषज्ञ इस अभियान में हमारी मदद कर सकते हैं। इसके अलावा देश में स्थानीय भाषाओं में कानूनी दस्तावेज और अदालतों के फैसले लोगों को मिल सकें, इसके लिए भी काम होने हैं। हमारे उच्चतम न्यायालय ने इसकी शुरुआत की है। शीर्ष अदालत के मार्गदर्शन में एक सॉफ्टवेयर बना है, जिससे न्यायिक दस्तावेज 18 भाषाओं में अनूदित हो सकते हैं।’’

प्रधानमंत्री ने ऐसे सभी प्रयासों के लिए न्यायपालिका की भी सराहना की।

मोदी ने यह भी कहा कि 21वीं सदी में देश को आगे ले जाने में ‘एकीकरण’ शब्द की अहम भूमिका होने जा रही है।

उन्होंने कहा, ‘‘परिवहन के साधनों का एकीकरण, डेटा का एकीकरण, स्वास्थ्य प्रणाली का एकीकरण। हमारा विजन है कि देश के जो भी आईटी सिस्टम अलग-अलग काम कर रहे हैं, उन सभी का एकीकरण हो। पुलिस, फॉरेंसिक्स, प्रोसेस सर्विस मैकेनिज्म और उच्चतम न्यायालय से लेकर जिला अदालतों तक सभी एक साथ जुड़कर काम करें।”

मोदी ने कहा, “आज राजस्थान की सभी जिला अदालतों में इस इंटीग्रेशन प्रोजेक्ट की शुरुआत हुई है। मैं इस परियोजना की सफलता के लिये आप सभी को शुभकामनाएं देता हूं।’’

उन्होंने यह भी कहा कि भारत के उच्चतम न्यायालय ने एक सॉफ्टवेयर की मदद से इसकी शुरुआत कर दी है, जिसके जरिए न्यायिक दस्तावेजों का 18 भाषाओं में अनुवाद किया जा सकता है। मोदी ने न्यायपालिका द्वारा किए गए सभी अनूठे प्रयासों की सराहना की।

इस अवसर पर केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अर्जुन राम मेघवाल ने अपने संबोंधन में कहा कि प्रधानमंत्री ने न्याय प्रक्रिया में तकनीक के बढ़ते महत्व पर भी जोर दिया है और आमजन को सरल, सुलभ, और त्वरित न्याय दिलाने के लिए तकनीक के उपयोग की आवश्यकता पर बल दिया।

उन्होंने कहा कि 1562 ऐसे कानून समाप्त किए गए हैं जिनकी जरूरत नहीं थी।

राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने कहा कि राजस्थान में न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका बेहतर काम कर रही है।

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने दशकों पुराने कानूनों को समाप्त करने, नए कानूनों के जरिए प्रक्रिया को आसान बनाने और नियमों को सरल बनाने जैसे काम किए हैं।

इस अवसर पर राजस्थान के राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति मनिंद्र मोहन श्रीवास्तव उपस्थित थे।

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